Saturday, January 30, 2010

अभी तो है बाकी......

कहाँ ले चले तुम, मुझको ओ लोगों?
अभी तो मुझमे चंद साँसे हैं बाकी...
ये गैरों की महफिल है...यहाँ न कोई मेरा
ठहरो, अभी मेरे अपनों का आना है बाकी...


बहुत कुछ बताना है मुझे अपनी माँ को
पिताजी को कई किस्से सुनाना है बाकी
छोटू और पिंकी को तोहफे हैं देने
और अभी तो रूठी दिलरुबा को मनाना है बाकी........

अब वक्त नही रुकेगा तुम्हारे लिए...
उसे क्या पता क्या-क्या करना है बाकी?
नशे के वक्त क्यूँ परवाह की अपनों की?
अभी तो उनके साथ सारा जीवन बिताना था बाकी.....

कहाँ चला गया है मेरे लाल तू?
अभी तो वो वादा निभाना था बाकी...
तूने जो किया था कि घर आऊंगा माँ मैं..
अभी तो तेरा छुट्टियों में घर आना था बाकी....

कहता था, पिताजी मुझे करना है आपके अरमानों को पूरा
आपकी जिम्मेदारियों का बोझ अपने कन्धों पर उठाना है बाकी
आज मेरे ही कन्धों पर सवार होकर जा रहा है...
क्या इस बाप को यही दिन दिखाना था बाकी?

भइया तुमने कहा था सिखाओगे फर्रे बनाना..
और अभी तो भाभी से मिलवाना था बाकी...
पिंकी को भी तोहफा अभी नही चाहिए
अभी तो राखी बंधवाना है बाकी....

करनी थी बहुत सी शिकायतें तुमसे
तुम्हे अभी और सताना था बाकी...
ले चलो मुझे भी, यूँ छोडो तनहा
कि तुम बिन अब यहाँ रहा क्या है बाकी?

नशे ने तो चिता पर लेटा ही दिया था
अब रह गया बस जलाना है बाकी
ज़हर पी लेते हैं ख़ुद अपने ही हाथों से
और अपनों पर छोड़ जाते हैं अस्थियों का बहाना ये बाकी.....

ऋतू गुप्ता

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